एक बार महाराजा रणजीत सिंह घोड़े पर सवार होकर सैनिकों के साथ जा रहे थे। अचानक एक पत्थर उनके
सिर पर आकर लगा, उनका लश्कर रुक गया और पत्थर
मारने वाले की तलाश शुरू हो गई। थोड़ी देर में सैनिक
एक बुढ़िया को पकड़ लाए जो भय से थरथर कांप रही
थी।
सैनिकों ने कहा, महाराज इस बुढ़िया ने आपको पत्थर
मारा है। "महाराज ने बुढ़िया को पास बुलाकर कारण पूछा
तो वह बोली, "महाराज मेरे बच्चे दो दिन से भूखे हैं, अनाज का एक दाना भी घर में नहीं है, जब कोई उपाय न सूझा तो भोजन की तलाश में घर से निकल पडी। सामने के पेड़ पर फल देखकर मैं पत्थर मारकर इन्हें तोड़ने की कोशिश कर रही थी,
ताकि बच्चों के पेट की ज्वाला शांत कर सकूं। दुर्भाग्य ने यहां
भी मेरा साथ नहीं छोड़ा और पत्थर आपको लग गया।
मैं माफी चाहती हूं।"महाराजा ने सेनापति को आदेश दिया, “इसे कुछ अशर्फियां देकर छोड़ दो।" सेनापति ने आश्चर्य से पूछा, "महाराज यह कैसा ईनाम, यह तो सजा की हकदार है।"
रणजीत सिंह ने हंसकर उत्तर दिया, जब पत्थर मारने पर निर्जीव पेड़ भी मीठा फल देता है तो मनुष्य होकर मैं बुढ़िया को निराश क्यों करूं।" बुढ़िया महाराज के सामने नतमस्तक हो गई। महाराजा रणजीत सिंह की न्यायप्रियता इतिहास
में अमर है।
जरूरतमंदों की मदद जरूर करें
एक बार ईश्वरचंद्र विद्यासागर कलकत्ते की भीड़ भरी सड़क पर गुजर
रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक वृद्ध को सिर झुकाए परेशानी की
हालत में देखा। यह देखकर उन्होंने उस व्यक्ति से
पूछा, "भाई, तुम्हें क्या दुख है ?" वृद्ध ने अपना दुखड़ा सुनाना
उचित न समझकर टालने की कोशिश की । परन्तु ईश्वरचंद्र ने सहानुभूति
जताते हुए कहा, आप अपनी मुश्किल तो बताइए।" शायद मैं मदद
कर सकूं। ईश्वरचंद्र की बात सुनकर वृद्ध ने कहा, "मैं गरीब आदमी हूं।
बेटी के विवाह के लिए किसी से कर्ज लिया था। लाख कोशिश
करने पर भी उसे नहीं चुका सका। अब उस व्यक्ति ने मुझ पर मुकद्दमा कर दिया है। कर्ज का बोझ तो पहले से था, अब कोर्ट-चहरी
का झंझट अलग से।"ईश्वरचंद्र ने कहा, "चिंता न करें। कुछ न
कुछ हल जरूर निकालेगा।"उस गरीब आदमी से ईश्वरचंद्र ने मुकद्दमे की
अगली तारीख, अदालत का नाम आदि पूरा विवरण लिया और
वह वहां चले गए। मुकद्दमे की निश्चित तारीख पर वह वृद्ध अदालत पहुंचा
और एक कोने में बैठकर अपने नाम की पुकार का इंतजार करने लगा। पैसों
का इंतजाम हो नहीं पाया था इसलिए वह काफी घबराया
हुआ था। जब पुकार नहीं हुई तो उसने अदालत के कर्मचारियों
से पूछताछ की। पता चला कि किसी ने उसके कर्ज की पूरी रकम
जमा करवा दी है और मुकद्दमा खारिज हो गया है।
पूछताछ करने पर उस वृद्ध को पता चला कि उसका कर्ज उतारने वाले.
धर्मात्मा पुरुष वही थे जो कुछ दिन पहले उसे सड़क पर मिले थे। इस
तरह ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने बिना दिखावा किए उस व्यक्ति के दुख को
दूर कर दिया।
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